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बरगद की छांव

बरगद की घनी, शीतल छाँव में बैठ चबूतरे पर 

भोर से लेकर रात तक महफिल सजती हां यहीं पर 

बड़े बुजुर्गो की सीख सबक मिलती सबको यहीं पर
चुन्नू मुन्नू लाली बाली लटाओं पर झूला झूले हां यहीं पर 

सुख-दुख हंसी ठिठोली बाँटते सब एक दूजे से यहीं पर
अन्जान राहगीर भी पल भर को सुस्ताने बैठते हां यहीं पर 

नवेली बहू पल्ले उठा गांव को निहारती पहली दफा यहीं पर
वीर सपूत को अपने बस में बैठाते गले मिलकर सब हां यहीं पर 

गांव की समस्या मसले को सुलझाते बैठ पंचायत भी यहीं पर
वट वृक्ष के नीचे फबती ग्रामीणों की चौपाल हर दिन हां यहीं पर 

सुहागिने वट सावित्री का पूजन करती मिलजुल कर यहीं पर
मनिहारी वाला भी अपना दुकान जमाता हर सप्ताह हां यहीं पर

जंगल से आती लकड़हारिनें घड़ी भर बैठ दम ले लेती यहीं पर
सुखिया के बेटे और मुखिया की बेटी के मामले निपटते यहीं पर 

मनोरंजन के लिए ताश के पत्ते और पासे भी फेंके जाते यही पर
फागुन में रंग उड़ाते फगुवा गा नगाड़े बजाते टोलियां हां यहीं पर 

❣बरगद के छांव में समस्त ग्रामीणवासी ना ऊंच नीच ,ना जाति वाती सबके लिए होती थी वह जगह जहां पर मनोरंजन से लेकर समस्याओं तक को सुलझाए जाते थे अपनों की झंझटो को दूर कर गले मिलवाये जाते थे उनके हक दिलवाये जाते थे। आज के समय में तो अलग अलग सामुदायिक भवन बन गए हैं तब यह जगह लोगो की खुशियों का d-mart हुआ करता था। आधुनिकता ने इन सब के लिए अलग-अलग छत और चार दीवारी बना दिए जहां पर लोग अपनी हैसियत के हिसाब से प्रवेश लेते हैं।❣


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2 Comments

Renu

14-Apr-2022 05:20 AM

👌👏

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Rajeshwari thakur

29-Jun-2022 03:57 PM

🍫🍫🍫

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